उज्जैन। प्रदूषित कान्ह नदी का पानी क्षिप्रा के स्वच्छ जल में मिलने से रोकने को लेकर उज्जैन के त्रिवेणी घाट पर मिट्टी का कच्चा बांध बनाया गया है। क्षिप्रा में जमा गंदा पानी स्टॉप डेम खोलकर आगे बढ़ा दिया गया है और पाइपलाइन के जरिए नदी में नर्मदा का स्वच्छ जल भर दिया है। ऐसे में अब मकर संक्रांति (15 जनवरी) स्नान के लिए मोक्षदायिनी क्षिप्रा नदी के आंचल में जल उपलब्ध है। मिट्टी का बांध बनाने पर जल संसाधन विभाग के 20 लाख रुपये से अधिक खर्च हुए हैं। बता दें, 2014 के बाद से स्थानीय प्रशासन हर साल श्रद्धालुओं को मकर संक्रांति पर्व पर क्षिप्रा नदी में नर्मदा-क्षिप्रा के संगम जल में स्नान करा रहा है।
इस व्यवस्था
पर सरकार को करोड़ों रुपये खर्च करना पड़ रहे हैं। कान्ह का प्रदूषित पानी क्षिप्रा में
मिलने से रोकने के लिए मिट्टी का कच्चा बांध बनाने पर ही हर साल प्रशासन को 20 से
25 लाख रुपये खर्च करना पड़ते हैं। पिछले वर्ष कान्ह का प्रदूषित पानी क्षिप्रा में
मिलने से रोकने के लिए संतों ने धरना दिया था। इसके बाद शासन स्तर पर कई कदम उठाए गए।
कान्ह का प्रदूषित पानी क्षिप्रा के स्नान क्षेत्र में मिलने से रोकने के लिए अफसरों
ने 598 करोड़ रुपये की कान्ह नदी डायवर्शन क्लोज डक्ट परियोजना बनाई है। हालांकि इस
पर जमीनी काम शुरू नहीं हो पाया है।
क्षिप्रा का
पानी डी ग्रेड
प्रदूषण नियंत्रण
बोर्ड के अनुसार क्षिप्रा का पानी डी ग्रेड का है। इसका मतलब यह कि पानी स्नान तो छोड़ो
आचमन करने लायक भी नहीं है। जब तक सीवरेज प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन नहीं हो जाता, कान्ह
नदी पर एसटीपी प्लांट, बैराज, कैनाल का निर्माण नहीं हो जाता, क्षिप्रा शुद्ध नहीं
होने वाली।
900 करोड़ रुपये
खर्च नतीजा शून्य
बताया जा रहा
है कि सरकार ने क्षिप्रा को प्रवाहमान और शुद्ध बनाने के लिए बीते दो दशक में 900 करोड़
रुपये खर्च कर इंदौर, उज्जैन, देवास में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना की है,
कान्ह डायवर्शन पाइपलाइन बिछवाई है, नर्मदा को क्षिप्रा से जोड़ा है। इसके बावजूद नतीजा
शून्य ही रहा है। देवास में उद्योगों का दूषित पानी मिलना, उज्जैन में इंदौर से निकली
प्रदूषित कान्ह नदी और धर्मनगरी के गंदे नालों का पानी मिलना है।
पक्का बांध
स्वीकृत नहीं, इसलिए बनाते कच्चा बांध
खान का गंदा पानी क्षिप्रा में
मिलने से रोकने के ठोस उपाय के तहत जल संसाधन के अधिकारियों ने गोठड़ा में पक्का बांध
बनाने का प्रस्ताव शासन को भेजा था। इसकी लागत पांच करोड़ रुपये थी, लेकिन स्वीकृति
नहीं मिली। जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री कमल कुवाल का कहना है कि वर्ष में
एक बार कच्चा बांध बनाना पड़ता है। एक बार की लागत लाखों रुपये है। पिछली बार कच्चा
बांध बह भी था। 5 जनवरी 2019 को शनिश्चरी के लिए अधिकारी क्षिप्रा में नर्मदा का पानी
समय रहते हुए लाने में नाकाम रहे थे। ऐसे में श्रद्धालुओं को दूषित जल में स्नान करना
पड़ा था। इस लापरवाही पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने तब के संभागायुक्त एमबी ओझा और
कलेक्टर मनीष सिंह को तत्काल हटा दिया था।
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