जवाबदेही @ इंदौर
शहर का ट्रैफिक तो भगवान के भरोसे ही चलता है, लेकिन सड़कों और चौराहों की जो इंजीनियरिंग की गई है वो क्या वास्तव में गलत है, जिसकी वजह से ट्रैफिक डीसीपी के प्रयासों के बाद इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) के छात्रों ने अव्यवस्थाओं को जांचने का काम शुरू किया है। इनमें राजीव गांधी प्रतिमा चौराहा और चोइथराम मंडी चौराहा हैं। इन दोनों चौराहों पर आईआईएम छात्र पीक ऑवर्स में ट्रैफिक के सुचारु संचालन को लेकर आने वाली समस्याओं को नोट कर शीघ्र ही एक स्टडी रिपोर्ट ट्रैफिक विभाग को सौंपेंगे।
डीसीपी ट्रैफिक महेशचंद जैन के अनुसार शहर में कई प्रमुख चौराहों पर ट्रैफिक इंजीनियरिंग की खामियां हैं। इसमें प्रमुख चौराहों की खराब इंजीनियरिंग, ट्रैफिक के लोड, ट्रैफिक के फ्लो, सिग्नल्स व डिवाइडर्स से लेकर रोड मार्किंग व रोटरी की समस्या या अव्यवस्था को चिह्नित कर हम सिविल इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के छात्रों से ऐसे करीब 15 चौराहों पर उनके विजन से स्टडी करवा रहे हैं कि वे क्या समस्याएं देखते हैं। इसके लिए शहर के करीब 51 सिविल इंजीनियरिंग कॉलेजों के डायरेक्टर्स व संचालकों को पत्र लिखकर छात्रों के एक दल के साथ चौराहों पर स्टडी करने के लिए मांग की है।
इसमें ट्रैफिक विभाग की कोई गलती नहीं...
विडंबना यह है कि जब काम शुरू होता है, तब इस बात पर जोर ज्यादा दिया जाता है कि कौन-सी कंपनी इसका सर्वे करेगी, क्योंकि मुख्य सड़कें और चौराहों पर ट्रैफिक का सर्वे करने के लिए निजी कंपनियों को लाखों रुपए दिए जाते हैं, जिसमें बिना सेटिंग के कोई काम नहीं होता। वहीं, जब चौराहे या पुल बन जाते हैं तो ट्रैफिक की दिक्कत आती है, इसके बाद फिर शुरू होता है चौराहे पर बैरिकेड लगाकर हालात को कंट्रोल में करना... और जब हालात नहीं सुधर रहे हैं तो फिर नई कवायद कि छात्रों के हवाले चौराहे कर दिए जाते हैं। दिनभर पढ़ाई करने के बाद छात्र चौराहों पर यातायात संभालते नजर आते हैं, जिसके बदले उन्हें एक सम्मान पत्र मिल ही जाता है। खैर, युवाओं के जुनून को समझा जा सकता है कि वह शहर हित में अपना कीमती समय देते हैं।
असल में शहर में सड़कों और पुलों की डिजाइन बनाने वाले लोग जो जिम्मेदार पदों पर बैठे हैं, उन्हें सिर्फ कागजों पर चिड़िया बैठाना (हस्ताक्षर) आता है। हकीकत में काम से ज्यादा उस मद पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है कि उसमें से कितना कमिशन मिलेगा।
मजेदार बात यह है कि शहरभर में कई लंबी-चौड़ी सड़कें बन गई हैं, जहां ट्रैफिक की दिक्कत हो रही है और जो समस्याएं पैदा हो रही है, उसकी स्टडी छात्रों से कराई जा रही है। हकीकत में होना यह चाहिए कि जिन गैर जिम्मेदारों ने सड़क और चौराहों की डिजाइन को लेकर टेंडर पास किए वे ही इन अव्यवस्थाओं के लिए जिम्मेदार हैं, जिनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं।
अब बात पते की
सड़कों पर क्यों लगता है जाम, सब जानते हैं, लेकिन अनजान
सड़क किनारे पैदल राहगीरों के लिए फुटपाथ का निर्माण करोड़ों रुपए खर्च कर किया जा रहा है, लेकिन फुटपाथ आम आदमी की बजाए, व्यवसाय करने वालों के लिए बनाए गए हैं, ऐसा महसूस होने लगा है। फुटपाथ पर ठेले, पानी-पताशे वालों सहित तमाम दुकानदार और सड़क पर आम आदमी पैदल चलता नजर आता है। कई हादसे हो रहे हैं, लेकिन हकीकत जानकर भी नगर निगम के गैर जिम्मेदार अफसर फुटपाथ पर जमे व्यापारियों पर कार्रवाई नहीं करते। नगर निगम की पीली गाड़ी वालों का हिस्सा भी बंधा है, तो कार्रवाई क्यों हो, भुगतना तो बेचारे पैदल चलने वालों को है।
गौरीनगर मेन रोड पर फुटपाथ पर लाखों खर्च किसके लिए
विगत माह गौरी नगर मेन रोड पर इलेक्ट्रॉनिक्स कॉम्प्लेक्स की दीवार से सटकर लंबा-चौड़ा फुटपाथ बना दिया है। लेकिन यह फुटपाथ किसी के काम नहीं आ रहा है। इस फुटपाथ पैदल तो लोग चलने से रहे, क्योंकि िजस चौड़ाई में यह फुटपाथ बना है, ठीक इससे सटकर ठेलेवालों ने कब्जा कर रखा है। बची कसर चार पहिया वाहन चालकों, बैंडबाजों की गाड़ियों, रेत वालों सहित तमाम वो लोग, जो यहां आसपास रहते हैं, उन्होंने कब्जा कर रखा है। फुटपाथ तो खाली पड़ा रहता है, लेकिन वाहन और ठेले वाले मुख्य सड़क तक आ चुके हैं। फुटपाथ बनाकर ठेकेदार ने कमाई कर ली, जिन्होंने टेंडर पास किए उन्होंने भी अपनी जेब भर ली, लेकिन फुटपाथ पर पैदल चलने वाले नजर नहीं आ रहे हैं, दिखते हैं तो सिर्फ अतिक्रमण करने वाले।
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