नई दिल्ली। कोविड-19 की शुरुआत से ही दुनिया भर में सबसे ज्यादा चिंता बच्चों और बुजुर्गों की थी। जब वैक्सीन आई और इसका असर देखने को मिला तभी से बच्चों की वैक्सीन एक चर्चा का विषय बनी हुई है। इसे लेकर तमाम तरह के सवाल हैं, वैक्सीन कब आएगी, क्या इसे लगाना सही होगा? जब अनुमानित तीसरी लहर का सबसे व्यापक असर बच्चों पर पड़ने की बात कही गई तो चिंता और गहरी हो गई। ऐसे में भारत बायोटेक की कोवैक्सीन की विशेषज्ञ समिति ने आपातकाल इस्तेमाल के लिए सहमति दी है, जो एक उम्मीद की किरण है। हालांकि ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीजीसीआई) से अभी तक अनुमति नहीं मिली है। लेकिन, फिर भी इस वैक्सीन ने लोगों की अपेक्षाओं को बढ़ा दिया है।
इसके पहले जायडस कैडिला की जो दुनिया की पहली डीएनए पर आधारित वैक्सीन है, 12 वर्ष से ऊपर के उम्र समूह के ऊपर किया गया, यह फेज टू ट्रायल सफलतापूर्वक पार कर चुकी है। पालकों के मन में सवाल उठ सकते हैं, िजसका समाधान बेंगलुरु के एस्टर सीएमआई अस्पताल के बालचिकित्सक और इंटरवेन्शनल पल्मोनोलॉजी कन्सलटेंट डॉ. श्रीकांत जेटी ने किया है। उनके अनुसार कोवैक्सीन एक निष्क्रिय वायरल घटक से तैयार किया गया है, हालांकि अभी इसकी समीक्षा नहीं हुई है और पूरी तरह से डेटा सामना नहीं आया है, लेकिन इस बनाने में उसी तकनीक का इस्तेमाल हुआ है जिस तरीके से आमतौर पर बच्चों की वैक्सीन बनाई जाती है। इसे देखकर तो लगता है कि ये सुरक्षित है। लेकिन फिर भी पालकों को यही मशविरा है कि जब तक संतोषजनक डेटा नहीं आ जाता है तब तक उन्हें इंतजार करना चाहिए।
डोज की मात्रा लेने पर डॉ. श्रीकांत जेटी का कहना है कि जितनी मात्रा वयस्कों को दी जाती है, उसकी आधी बच्चों को दी जाएगी, यानी वयस्कों को जहां 1 मिली दिया जाता है। वहीं, बच्चों में डोज 0.5 मिली का होगा। यह भी दूसरी वैक्सीन की तरह मांसपेशियों में लगाया जाएगा और दो डोज के बीच 4 हफ्तों (पहले डोज के 28 दिन बाद) का अंतर रहेगा। इसी तरह, बच्चों को वैक्सीन लगने का क्या यह मतलब समझा जाए कि हमने महामारी को मात दे दी? डॉ. श्रीकांत जेटी के अनुसार वयस्कों की तुलना में बच्चों में गंभीर संक्रमण कम देखा गया है। लेकिन बच्चे नाजुक होते हैं और वो संक्रमण को फैलाने की बड़ी वजह बनते हैं। इसके साथ ही जब बड़े समुदाय या ज्यादा लोगों में संक्रमण फैलता है तो एक से अधिक म्यूटेशन होने का ज्यादा खतरा रहता है। ऐसे में संक्रमण को आगे बढ़ने से रोकने के लिए वैक्सीन से बेहतर कोई उपाय नहीं है।
डॉ. श्रीकांत जेटी के अनुसार 140 करोड़ आबादी वाले भारत में 25 से 30 फीसद आबादी बच्चों की है। अकेले कर्नाटक में ही 1.7 करोड़ की आबादी 18 साल से कम उम्र की है। ऐसे में यह अहम हो जाता है कि उन्हें वैक्सीन लगाई जाए ये तीसरी लहर से उनको बचाने के लिए ज़रूरी है। इसके साथ ही इससे कोविड के बाद बच्चों को होने वाली परेशानियों जैसे एमआईएससी को भी रोका जा सकता है। क्या बच्चे वैक्सीन लगने के बाद किसी तरह के साइड इफेक्ट का सामना करेंगे, अगर हां तो वो क्या हो सकते हैं? बच्चों को लगने वाली दूसरी वैक्सीन की तरह बुखार, शरीर में दर्द, जहां वैक्सीन लगी है उस जगह पर दर्द उठना आम बात है ऐसा होता है तो ये कोई गंभीर बात नहीं है। अगर वैक्सीन अपना काम कर रही है तो इतने साइड इफेक्ट तो सहन किए जा सकते हैं।
बच्चों को कब लगेगी वैक्सीन, क्या होंगे साइड इफेक्ट, क्या है विशेषज्ञों की राय
कोवैक्सीन को अभी भी कई जगह पर स्वीकार नहीं किया गया है ऐसे में बच्चों के लिए दूसरा क्या विकल्प बचता है? इस पर डॉ. श्रीकांत जेटी का कहना है कि वैसे कोवैक्सीन बनाने में जो तकनीक इस्तेमाल की गई है वो पूरी तरह सुरक्षित है। पर हां अभी तक इससे जुड़ा डाटा नहीं आया है। इसलिए अभी कुछ भी कहना मुश्किल है। लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ये वैक्सीन एक सुरक्षित चुनाव होगा। और जहां तक विकल्पों की बात है तो कोविशील्ड पर ट्रायल चल रहा है। फाइजर के दूसरे डोज के बाद मायोकार्डिटिस को लेकर चिंता है, लेकिन इसके डेटा इसे सुरक्षित बताते हैं, पर हां इसे अभी तक भारत में बच्चों के लिए इस्तेमाल की अनुमति नहीं मिली है। और ZyCoV-D कतार में है ही. बस अब नतीजे पर पहुंचने के लिए और डेटा का इंतजार करना होगा।
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