अमीर लोगों के साथ मध्यवर्गीय भी चपेट में

जिम्मेदारी माता-पिता की है कि वे जल्दी नयी परिस्थितियों से सामंजस्य बैठाएं, ताकि बच्चे से संवादहीनता की स्थिति न आने पाए...

फिल्मी दुनिया में फिर ड्रग्स की चर्चा है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को मुंबई में एक क्रूज पर चल रही एक रेव पार्टी से गिरफ्तार किया। आरोप है कि उन्होंने ड्रग्स खरीदे और उनका सेवन किया था। हालांकि अदालत में आर्यन खान के वकील ने कहा कि एनसीबी को आर्यन खान के पास से ड्रग्स नहीं मिले थे। उन्हें मैसेज चैट के आधार पर गिरफ्तार किया गया है।

एनसीबी का दावा है कि उनके पास से ड्रग्स बरामद हुए थे। इस चर्चित गिरफ्तारी के बाद से रेव पार्टियों और ड्रग्स के इस्तेमाल पर बहस शुरू हो गई है। हाल के वर्षों में रेव पार्टियों की चर्चा अधिक हुई है। जो हकीकत सामने आ रही है, वो  चिंताजनक हैं। ये पार्टियां गुपचुप तरीके से आयोजित की जाती हैं और इनमें ड्रग्स और शराब का कॉकटेल होता है। वैसे तो ये पार्टियां बेहद अमीर लोगों के लिए होती हैं। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में मध्य वर्ग के युवा भी इनका हिस्सा बन रहे हैं। अमीर युवा संस्कृति को यूं भी नहीं मानते, वहीं मध्यमवगीर्य युवा भी इनकी देखा-देखी बदलचनी की जिंदगी जीने लग गए हैं।

कुछ समय पहले चर्चित अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच में नशे का एक पहलू पाया गया था। मामले में पहले रिया चक्रवर्ती और उनके भाई शौविक चक्रवर्ती गिरफ्तार हुए थे। तबी भाजपा सांसद और अभिनेता रवि किशन ने लोकसभा में फिल्म इंडस्ट्री में ड्रग्स के इस्तेमाल का मुद्दा उठाया था। ड्रग्स के बारे में अभिनेत्री कंगना रनौत ने भी सनसनीखेज बयान देते हुए कहा था कि बॉलीवुड के 99 फीसदी लोग नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। हालांकि राज्यसभा में समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन ने कहा था कि कुछ लोगों की वजह से पूरी इंडस्ट्री की छवि खराब नहीं की जा सकती।

 हाल में गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह पर टेल्कम पाउडर के नाम से आयातित लगभग तीन हजार किलो हेरोइन पकड़ी गई थी, जिसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगभग 21 हजार करोड़ रुपये आंकी जा रही है। इसे अफगानिस्तान से भेजा गया था और यह ईरान के रास्ते भारत पहुंची थी और पश्चिमी देशों को भेजी जा रही थी। एनआइए इस मामले की छानबीन कर रहा है। कहने का आशय यह है कि नशे की समस्या से जुड़ी चुनौती निरंतर बढ़ती जा रही है। यह समस्या केवल फिल्म इंडस्ट्री तक सीमित नहीं है। स्कूली और कॉलेज छात्रों में मादक पदार्थों का सेवन तेजी से बढ़ा है। वे कई बार कफ-सिरप और दर्दनाशक दवाओं का इस्तेमाल भी नशे के लिए करते हैं। नशा सिर्फ एक खास इलाके तक सीमित नहीं रहता है और यह धीरे-धीरे आसपास के क्षेत्रों को भी अपनी जद में ले लेता है। दरअसल, नशा एक व्यापक सामाजिक समस्या बन गया है, जो परंपरागत पारिवारिक ढांचे के बिखराव, स्वच्छंद जीवन शैली और युवाओं से साथ संवादहीनता के साथ बढ़ा है।

बच्चों में अब बहुत परिवर्तन आ चुका

एक विषय पर हम चर्चा करते हैं कि बात-बात में यह नहीं, वह नहीं, ऐसा नहीं, वैसा नहीं, यहां मत जाओ, ऐसा मत करो, वैसा मत करो, का बहुत अधिक इस्तेमाल करते हैं। ऐसा सोच-समझ कर किया जाना चाहिए। इससे बच्चों में एक तो नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, उनका मन विद्रोही हो सकता है, दूसरे अत्यधिक इस्तेमाल से बच्चों पर ‘नहीं’ का असर समाप्त हो जाता है। जहां आवश्यकता हो, वहां जरूर इसका इस्तेमाल करें। बच्चों में अब बहुत परिवर्तन आ चुका है। विदेशी पूंजी और तकनीक जब आती है, तो अपने साथ एक वातावरण और संस्कृति भी लाती है। दिक्कत यह है कि हम यह तो चाहते हैं कि पूंजी आए, लेकिन साथ आनेवाले वातावरण को हम स्वीकार नहीं करते। आप गौर करें कि आपके बच्चे के सोने-पढ़ने के समय, हाव-भाव और खान-पान सब बदल चुके हैं। हम या तो आंख मूंदे हैं या इसे स्वीकार नहीं करते।

बच्चे दिन-रात आपस में करते चैट

आप सुबह पढ़ते थे, बच्चा देर रात तक जागने का आदी है। आप छह दिन काम करने के आदी हैं, बच्चा सप्ताह में पांच दिन स्कूल जाता है। उसे मैगी, मोमो, बर्गर, पिज्जा से प्रेम है, आप अब भी दाल रोटी पर अटके हैं। यह व्हाट्सएप की पीढ़ी है, यह बात नहीं करती, मैसेज भेजती है, लड़के-लड़कियां दिन-रात आपस में चैट करते हैं। आप अब भी फोन कॉल पर ही अटके पड़े हैं।

 बच्चे से कुछ भी कहने से डरते माता-पिता

पहले माना जाता था कि पीढ़ियां 20 साल में बदलती है, पर तकनीक ने इस परिवर्तन को 10 साल कर दिया और अब नयी व्याख्या है कि पांच साल में पीढ़ी बदल जाती है। होता यह है कि अधिकतर माता-पिता नयी परिस्थितियों से तालमेल बिठाने के बजाए पुरानी बातों का रोना रोते रहते हैं। अब जिम्मेदारी आपकी है कि आप जितनी जल्दी हो सके, इससे सामंजस्य बैठाएं, ताकि बच्चे से संवादहीनता की स्थिति न आने पाए। ऐसा न हो कि कहीं वह नशे के जाल में उलझ जाए और आपको पता तक न चले। यह भी जानना चािहए कि बच्चे क्या सोच रहे हैं, कैसे सोच रहे हैं, उनकी महत्वाकांक्षाएं क्या हैं। कुछ माता-पिता बच्चे से कुछ भी कहने से डरते हैं कि वह कहीं कुछ न कर ले। 

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