पराए धन पर पुलिस कर रही मौज
खाकी वर्दी का रुतबा... तो रुतबा है..., फिल्मों में जितनी ईमानदारी से दिखाई पड़ता है, उसके विपरीत असल जिंदगी में होता है। फिल्मों में सिंघम ईमानदारी की लड़ाई लड़ता दिखाई पड़ता है...और एक रुपया भी रिश्वत लेना या मुफ्त की कोई सेवा लेना फर्ज और कानून के साथ गद्दारी करना मानता है....। ये सब फिल्मी दुनिया का एक हिस्सा है, जिसका रियल लाइफ में पुलिसकर्मियों और टीआई के लिए कोई मायने नहीं रखता। और हां, ये बात सोलह आने सच भी है। क्योंकि, वर्दी पहननेसे अदने से पुलिसकर्मी से टीआई और कुछ अफसरों तक का सीना जितना है, उससे ज्यादा चौड़ा हो जाता है।....और अब तो और अधिक चौड़ा हो गया है, क्योंकि पुलिस कमिश्नरी जो लागू हो गई है। न तो पहले कोई सवाल करता था और न अब कोई करेगा?
नई पुलिस कमिश्नरी लागू होने के फायदे और नुकसान अलग-अलग है। फायदे की परिभाषा... पुलिस का फायदा ही फायदा...। ....और नुकसानी की बात करें तो व्यापारियों का नुकसान ही नुकसान। लड़ाई-झगड़ा, जुलूस निकालना, अनुमति लेना जैसे झमेले तो इस नई कमिश्नरी की वजह से चलते ही रहेंगे और जिसके निपटान के लिए हमारी मप्र पुलिस तोे है ही बेमिसाल।
साहब, खाकी का रुतबा तो है ही ऐसा, चारों अंगुलियां घी में और सिर कढ़ाई में। साहब के तो जलवे होते है..., साथ ही इनकी आड़ में रिश्तेदारों की भी पौ-बारह होती रहती है। पूरे मध्यप्रदेश में पुलिस का यही रुतबा है।
अब इंदौर की हालत क्या बताए साहब, शहर के जितने भी थाना क्षेत्र है और इन थाना क्षेत्रों में जितनी भी बड़ी-छोटी होटले हैं, यहां संबंधित थाना क्षेत्र के टीआई की आवभगत होटल मालिकों को मजबूरी में करना पड़ रही है। आप ये जानकर आश्चर्यचकित होंगे कि पूरा शहर फुटपाथ पर चल रहा है, लेकिन बड़ी होटलों की पार्किंग पर साहब की विशेष दृष्टि रहती है। दो-चार जवानों को होटलों पर पहुंचाया, और चमकावट कर दी। साहब है कि मानते नहीं। साहब का जब मुड बन जाए तो वो किसी भी होटल में जा धमकते हैं और खाने-पीने का लुत्फ उठाते हैं, जब होटल द्वारा बिल दिया जाता है तो थाने पर बिल भेज देना और वहां आकर ले लेना जैसी बातें कही जाती है...। और थाने पर कभी बिल का भुगतान होता ही नहीं। इंदौर क्या और भोपाल क्या... और प्रदेश क्या? सभी जगह साहबगिरी ही चल रही है।
इंदौर में तो साहबगिरी का ये रुतबा है कि साहब अपने आला अफसरों को भी दावत देते हैं। अफसरों के साथ उनके ईष्ट-मित्र पहुंचते हैं और ऑर्डर भी लक्जरी दिया जाता है। मानकर चलो कि 10 से 15 हजार का तो बिल बनता ही है। साहब की पार्टी नॉनवेज वाली होती है, जिसमें पीना-पिलाना तो पड़ता ही है और वह भी महंगी वाली। मजेदार बात यह है कि हर थाना क्षेत्र की लक्जरी होटलों के खान-पान का बिल साहब थाने में ही मंगवाते हैं... और बिल है कि पास ही नहीं होता...!
होटल में कमरा तो देना ही होगा...
दो साल तक होटल व्यवसाय बंद जैसा ही रहा। किसी भी होटल में न तो शहनाई बजी और न ही कोई पारिवारिक आयोजन। होटल व्यवसायियों की मजबूरी थी और उन्होंने अपना स्टाफ तक नहीं निकाला। ...और अब जब दो साल बाद शहनाइयां बजने लगी और लोगों का रुख होटल की तरफ बढ़ा तो ऐसे में शादी के सीजन में शहर की लगभग सभी होटलों के कमरे बुक हो रहे हैं। ऐसे में साहब के घर-परिवार में भी शादी-जश्न का माहौल चल रहा है और घर पर भी मेहमान आए हैं। ...तो साहब को अपना रुतबा भी रिश्तेदारों और दोस्तों को दिखाना है। संबंधित थाने से जवानों को भेजकर साहब के मेहमान के लिए रूम मांगा जाता है। होटल प्रबंधन पूरे रूम बुक होने की जानकारी देते हैं तो भी कहा जाता है कि `अच्छा तो आप साहब के रिश्तेदारों के लिए रूम नहीं दोगे...?` ये क्या बात हुई भला...। जब रूम ही खाली नहीं है तो साहब के मेहमान को कहां ठहराएंगे...। साहब की आन-बान और रुतबे को देखकर किसी होटल वाले ने कमरा दे दिया तो जितने दिन मेहमान वहां रुकता है, वो मानकर चलो घर में अगर दो बार खाना खाता है और महीने में एकाधबार जेब का रुपया खर्च कर शराब पीता है तो होटल में दिनभर में पांच बार नाश्ता और खाना खाएगा और जब उतरी, तब शराब या बियर मंगवाता रहेगा... न साहब को बिल की चिंता और मेहमानों को तो पता ही कि उसे बिल नहीं देना है, क्योंकि हिंग लगे ने फिटकरी...रंग चौखा का चौखा। मेहमान भी बोल देते हैं, साहब की बातचीत तो है शहर में..., और साहब अपनी कॉलर तो खड़ी रखते ही है....., ऐसे कामों के लिए। साहब के घर शादी है तो मान लो आठ-दस होटल वालों की तो शामत ही आ गई है। इसके अलावा कई बार साहब के मित्र लोग उनकी महिला मित्रों तक को होटल में ले आते हैं..., उन्हें काफी समझाया जाता है, जब जाकर वह मानते हैं।
कुल्फी वाला बेचारा बोल नहीं पाता...साहब है कि मान नहीं रहे...!
शहर के एक थाना क्षेत्र में एक कुल्फी वाला बड़ा दुखी है पुलिस वालों से। लेकिन बेचारा कुछ बोल नहीं पाता। साहब को यहां की कुल्फी बहुत पसंद है, साथ ही मैडम को और बच्चों के साथ साहब के ससुराल वालों को भी। साहब का जन्मदिन हो, मैडम का हो, बच्चों का हो सभी यहां से कुल्फी खाना पसंद करते हैं। ...और तो और जब साहब और मैडम की शादी की सालगिरह होती है तो विशेष पैकेज गिफ्ट के रूप में भी देना पड़ता है। कुल्फी सेंटर का मालिक अंदर ही अंदर दुखी होकर ऊपरी मन से खुशी-खुशी जन्म दिन की बधाई और शादी की सालगिरह की बधाइयां देता रहता है। ...और जब थाने के जवान जाते हैं तो बेचारा यह भी बोलता है कि साहब को मेरी राम-राम कह देना। अर्थात... दुकानदारों की मजबूरी भी है, क्योंकि उनके अपने परिवार की चिंता है। साहब की आड़ में जवानों के भी परिवार की खुशियां इस कुल्फी वाले की दुकान पर मिलती हैं।
ओहदे के हिसाब से ...जुगाड़
पुलिस विभाग में जिसका जैसा ओहदा, वैसे उसकी जुगाड़। संत्री लेवल के जवान ने अपनी पोस्ट के हिसाब से जुगाड़ लगा रखी है, बुट पॉलिश वाले से सेवा लेना, जूते चकाचक करवाना, सब्जी वाला, गोल-गप्पे वाले जैसे छोटे-मोटे दुकानदारों पर इनका रौब चल जाता है। इसी प्रकार जैसे-जैसे ओहदे पुलिस विभाग में है, उसी ओहदे के अनुसार पुलिस कर्मचारियों की जुगाड़ है। अफसर तो रहे सब्जी वाले और फल वालों से उठाईगिरी करने से..., इसलिए इनकी बड़ी जुगाड़ बड़े दुकानदार और व्यवसायी है। साहब तो सब्जी वाले से सब्जी लेने से रहे, इसलिए पका-पकाया खाना बड़ी होटलों में जाकर खाते हैं। शहर की हर होटलों की टेबलों पर साहब का राज है।
आला अफसरों की जिम्मेदारी
आप प्रदेश की कमान संभालते हो, जनता के हितों का ख्याल रखना आपकी पहली प्राथमिकता है। अपराधों पर अंकुश लगाने में आपका बड़ा योगदान रहता है। आपसे जनता यही चाहती है कि जिस तरह आप अपराधों पर अंकुश लगाते हो, ठीक उसी तरह शहर के थाना प्रभारियों तक यह बात पहुंचाए कि वह व्यापारी बंधुओं को तंग ना करें, क्योंकि अगर ऐसा हर अफसर मुफ्त का खाना और सुविधाएं मांगने लगेगा तो व्यापारी व्यवसाय करेगा या फिर सेवा चाकरी। क्योंकि व्यापारी को तमाम टैक्स, तन्ख्वाह, बिजली का बिल आदि ईमानदारी से देना है तो फिर उसे तंग क्यों किया जाता।
एक दौरा साहब का....
कमिश्नर साहब, आप कड़कड़ाती ठंड में रिश्वतखोरों को ढूंढ रहे थे, पर उन तक आपकी खबर पहले ही पहुंच चुकी थी!
आपसे ज्यादा हाईटैक है आपके विभाग वाले
जवाबदेही.इंदौर। साहब, आपने जनता की शिकायत को गंभीरता से लिया और रिश्वतखोरों को ढूंढने के लिए भरी ठंड में कवायद की। आप मजदूर बने, फटा कुर्ता पहना, गमछा लपेट लिया, टूटी चप्पल भी पहन ली ताकि घूसखोर आपके शिकंजे में आ जाए...। लेकिन साहब, आपसे ज्यादा आपके विभाग वाले हाईटैक है, जिन्होंने आपके स्टिंग की यह खबर पहले ही फैला दी। मजेदार बात तो यह है कि नुकसान आपके विभाग वालों का शुक्रवार रात हुआ...! लेकिन, फायदे में वो ट्रक वाले रहे जो हर रात वसूली देते हुए ही निकलते हैं। आपका यह 40 किमी का सफर से आपके विभाग में एक संदेश तो पहुंचा कि साहब ऐसा भी कर सकते हैं।
रही बात रिश्वतखोर और भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों को घेरने की..., तो आप ना तो आपके विभाग वालों को इसकी सूचना दे और ना ही आपके करीब रहने वालों को..., तब जाकर आपके हत्थे चढ़ेंगे शहर के भ्रष्ट अफसर। आपको यकीन न हो तो शहर के किसी भी थाना क्षेत्र के टीआई को कहिए कि आपके क्षेत्र में किसी अच्छे होटल में भोजन करना है..., दावा है कि वो आपको बकायदा बोल देंगे कि साहब कब चलना है...और होटल में जाने पर आपको पता चल जाएगा कि स्थानीय टीआई का कितना रुतबा है अपने थाना क्षेत्र में कि कोई उनसे बिल ही नहीं मांगता...!
साहब, जिस तरह पुलिस के मुखबिर होते हैं, ठीक उसी तरह शहर के जागरुक नागरिकों को आप मौका दे कि वह ट्रक चालकों से वसूली करने वालों, थाने पर अभद्र व्यवहार करने वालों, वसूली करने वालों की जानकारी मय सबूत आपको दें तो आपको स्वयं ही पता चल जाएगा कि आपके विभाग में चल क्या रहा है...।
जनता को आप पर पूरा भरोसा है, क्योंकि जब से आप इंदौर में पदस्थ हुए तब से लेकर अब तक आप लगातार शहर में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रयासरत है। लेकिन, कुछ कथित पुलिसवालों की वजह से खाकी शर्मसार होती रहती है। ...और अब पुलिस कमिश्नरी जब से लागू हुई है, तब आप मैदानी काम कर रह रहे हैं, ताकि कानून व्यवस्था बनी रहे....।
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